किसकी सुनू...




तनहाई की भी जबान होती है...
ये चुपचाप...दबे पांव कानों में फुसफुसाती है
कहती है...हर जगह अंधेरा है...सन्नाटा है...कालिख है
लेकिन मेरा मन मानता ही नहीं...
कहता है...ज़रा नजर घुमा कर देखो...हर जगह रौशनी है...रौनक है...रंग है!

सोचती हूं...किसकी सुनू?

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